संपादकीय

हमारे अधिकार और दायित्व


जब व्यक्ति विवेकहीन हो जाता है, तब उसका मस्तिष्क विकृत होकर मूल उद्देश्य से भटक जाता है। ऐसी स्थिति में व्यक्ति की दशा और दिशा दोनों बिगड़ जाती हैं और वह किंकर्तव्याविमूढ़ होकर एक तरह से भटकाव की स्थिति में पहुंच जाता है। यह स्थिति निश्चय ही बड़ी खतरनाक होती है, क्योंकि यहीं से व्यक्ति का पतन प्रारंभ हो जाता है।


वर्तमान परिस्थिति में यदि हम देखें तो यह कह सकते हैं कि इंसान अपने लक्ष्य से भटकता हुआ नजर आ रहा है। लोग अपना उत्तरदायित्व भूलकर अनर्गल कार्यों में व्यस्त दिखाई दे रहे हैं। यह स्थिति एक लोकतांत्रिक देश के लिए बड़ी ही खतरनाक है। यद्यपि इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता कि आज की युवा पीढ़ी बेरोजगारी, महंगाई एवं अन्य कई समस्याओं से ग्रसित है, लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि वह आपराधिक प्रवृत्तियों में लिप्त होकर दिशाहीन हो जाए।


कानून को अपने हाथ में लेकर यदि हम कोई भी ऐसा कार्य करते हैं, जो देश की एकता, अखंडता और सुरक्षा के लिए घातक हो सकता है, तो वह निश्चय ही विवादास्पद माना जाएगा और ऐसी स्थिति में शासन व प्रशासन का यह कर्तव्य हो जाता है कि वह इस तरह की प्रवृत्ति पर रोक लगाए। आजकल के प्रतिस्पर्धात्मक वातावरण में विरोध करना एक आम बात है, लेकिन सिर्फ विरोध प्रदर्शन के लिए, किसी सकारात्मक दृष्टिकोण का अथवा किसी राष्ट्रीय हित के मुद्दे का विरोध करना सही नहीं ठहराया जा सकता है। विपक्षी दलों का कर्तव्य सरकार का विरोध करना हो सकता है, किन्तु विरोध करने से पहले यह देखना भी आवश्यक है कि उनका विरोध करना कहां तक न्यायोचित और उद्देश्यपूर्ण है।